एक देश एक समाज ।
हो गया है क्या आज ??
आधा देश
हरामजादा -
आधी आबादी
शहजादी-
पालन पोषण परिवार-
कोई कैसे देता नकार-
हमेशा गलती चाक़ू की -
चाहे कद्दू खुद गिरे
धड़ाम -
सफेदपोशों की निकले हाय राम -
हम्माम में ही नहीं सचमुच सब नंगे हो-
गिरेबान में झांको-
कद्दुओं तुम भी कुछ बदलो-
गरियाए हरदिन गए, मारे गए घसीट ।
ReplyDeleteहम को ही कहते रहे, अत्याचारी कीट ।
अत्याचारी कीट, दूध की धुली नारियाँ ।
चाहे जितनी ढीठ, पुरुष को मिली गारियाँ ।
चेतो सच्चित-सचिन, कहीं ना जाव बिराये ?
करते जो नुकसान, वही जाते गरियाए ।।