पुत्र रत्न की प्राप्ति हेतु आसक्त निराशा देवी ने पाखंडी बाबा से एक पाख तक यग्य कराया, और अंतत: पुत्र रत्न पाया ।
कहीं दस वर्षों बाद गुरु दक्षिणा चुकाने की बारी आई । सपरिवार पुन: उसी यग्य मढैया में जा पहुंची ।
अपनी बड़ी बेटी को बाबा की सेवा में लगाई ।
जय जय निराशा माई-जय जय पाखंडी बाबा की अधमाई-
पर यह बात पिता को रास ना आई-और उसने दिल्ली में एक अर्जी लगवाई । महंगी पड़ी बाबाई-
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शनिवारीय चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteबहुत बड़ा कलेवर है इस कथा लघु का। निराशा देवी अपनी निराशा दूर करबे पहुँचीं आशाराम के पास। बांझपन अतीत हु आ। लडकी जबान भई तो गुरु जीने दख्खिना मांगी करी। परोस दी वाने बड़ी लडकी।
ReplyDeleteअब सारा कुसूरवार बा ढोंगी कु ही चौं समझा जाए ?
एक सिरा और भी है इस कथा को जो इस सरकार की गिरती साख से आ जुड़ता है ना -हक़ ही कहीं अपनी गिरती साख को बचावे ये सरकार संतन को बाँधना ही सुरु न कर दे भैया। इब लाने जिनको पकरो गयो है साध्वी फाद्बी उनके खिलाफ तो या सरकार से आज तक चार्ज शीट तक दाखिल न भई फिर जो साशाराम संसद में छिपे बैठे हैं उनका क्या ?
जे हुई मिनी काब्य कथा।
Wednesday, 4 September 2013
लघु कथा : जय जय निराशा माई-जय जय पाखंडी बाबा की अधमाई
पुत्र रत्न की प्राप्ति हेतु आसक्त निराशा देवी ने पाखंडी बाबा से एक पाख तक यग्य कराया, और अंतत: पुत्र रत्न पाया ।
कहीं दस वर्षों बाद गुरु दक्षिणा चुकाने की बारी आई । सपरिवार पुन: उसी यग्य मढैया में जा पहुंची ।
अपनी बड़ी बेटी को बाबा की सेवा में लगाई ।
जय जय निराशा माई-जय जय पाखंडी बाबा की अधमाई-
पर यह बात पिता को रास ना आई-और उसने दिल्ली में एक अर्जी लगवाई । महंगी पड़ी बाबाई-